Monday 24 September 2018

'नर्क' तो नॉर्वे में है

Welcome to Norway's Hell

मेरे कहने का मतलब वो नहीं है । स्वर्ग और नर्क में अगर अंतर करेंगे । तो यहां नर्क जीत जाएगा । वैसे भी नार्वे दुनिया से सबसे खुशहाल देशों में से एक है ।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के मानव विकास सूचकांक में भारत 130वें स्थान पर और नार्वे अव्वल है । इसी नॉर्वे में नर्क नाम का एक गांव भी है ।
फोटो सभार गूगल









1990 में यहां की Mona Grudt मिस यूनिवर्स भी  रह चुकी हैं । यानी नर्क से बला की सुंदरी ने ब्रह्मांड में डंका बजाया है ।

Mona Grudt 


नर्क एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है । आबादी बहुत कम है । सितंबर के महीने में यहां ब्लू इन हेल फेस्टिवल मनाया जाता है ।  Hell का नाम नार्वेजियन शब्द hellir से पड़ा है । इसका मतलब होता है 'लटका हुआ' । बर्फबारी की वजह से यहां घरों के छज्जे नीचे की ओर झूके होते हैं शायद ये उसी ओर इशारा करती है । वैसे नार्वे खगोलीय रहस्यमयी जगह भी है । आर्कटिक सर्कल में स्थित इस देश में  मई से जुलाई के बीच करीब 76 दिनों तक सूरज अस्त नहीं होता ।

अगर कोई आपसे अब कहे कि 'नर्क में जाओ' (Go to Hell) तो इस पर क्या कहेंगे ? नर्क जाना पसंद करेंगे या फिर...।





Friday 7 September 2018

'मधुमक्खियां' बचा रही हाथियों की जान, जानिए कितनी जरूरी हैं ये

आधुनिकता हाथियों के लिए मुसीबत बन गई । भारत में जंगलों से गुजरने वाली ट्रेने इनके लिए यमदूत साबित होने लगी...हमारे देश में हर साल औसतन 17 हाथी रेल दुर्घटना का शिकार होते हैं । 
2017 में 12 हाथियों ने जान गंवाईं । वहीं 2016 में इनकी संख्या 16 थी । आंकड़े कहते हैं 2009 से 2017 के बीच (8 सालों में) करीब 120 गजराज हादसे का शिकार हुए । 
लेकिन रेलवे ने इसे एक जंगल के ही तरकीब से हल किया । हाथी जिससे डरते थे, उसी से उनकी रक्षा होने लगी है ।


फोटो साभार गूगल

पहले पढ़िए रेल मंत्री पीयूष गोयल का ये ट्वीट-
रेलवे ने हाथियों को ट्रेन हादसों से बचाने के लिए "Plan Bee" के तहत रेलवे-क्रासिंग पर ऐसे ध्वनि यंत्र लगाए हैं जिनसे निकलने वाली मधुमक्खियों की आवाज से हाथी रेल पटरियों से दूर रहते हैं और ट्रेन हादसों की चपेट में आने से बचते हैं।




हाथी मधुमक्खियों की 'हम्म' ध्वनि से 400 मीटर दूर से ही सुन लेते हैं । औसतन 100 मीटर की दूरी बनाकर रखते हैं । और आस-पास भटकने का जोखिम नहीं लेते । 
अफ्रीका में जो किसान हाथियों से परेशान रहते हैं । या जिन इलाकों में हाथियों उत्पात मचाते रहते हैं । वहां मधुमक्खी पालन की सलाह दी गई है । संभवत: ये तरकीब पूरी दुनिया में वहीं से फैली है ।


केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है मधुमक्खी का छत्ता खा लेने वाला एक कैटरपिलर प्लास्टिक भी खा सकता है । सोचिए अगर मधुमक्खी ना होती तो ये प्लास्टिक के खतरे से निपटने की ये उम्मीद भी नहीं दिखती ।
मधुमक्खी की ध्वनी 'हम्म' हाथियों की जान बचाती है । लेकिन इसका इस्तेमाल योग और ध्यान में भी तो होता है । 
भ्रामरी प्रणायाम में मधुमक्खियों की आवाज का इस्तेमाल किया जाता है । इसे बी-टेक्निक ब्रीदिंग भी कह सकते हैं । भ्रामरी से चिंता और क्रोध पर नियंत्रण रहता है । हाइपरटेंशन की शिकायत में इससे फायदा मिलता है ।

मधुमक्खियों के जरिए इकठ्ठी शहद स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होती है । 20 मिनट में इसके पोषक तत्व रक्त में पहुंच जाते हैं। क्योंकि ये पहले से ही मधुमक्खियों द्वारा पचाया गया होता है ।
मधुमक्खी में सूंघने की जबरदस्त शक्ति होती है । 170 रिसेप्टर्स पाए जाते हैं । भविष्य में बम और ड्रग्स ढूंढने अगर इनका इस्तेमाल हो तो कोई आशचर्य नहीं । 
कुछ शोधकर्ता ने ये भी पाया है कि इनके डंक से निकला जहर गठिया के लिए काफी लाभप्रद है.. 
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन मानते थे कि अगर पृथ्वी से मधुमक्खियां खत्म हो गईं तो मनुष्य जाति भी बहुत साल जीवीत नहीं रह पाएगी ।





Tuesday 4 September 2018

'कांग्रेस मुक्त भारत' के बाद 'कांग्रेस-माओवादी' पार्टी !


भाजपा के प्रवक्ता ने कहा कि नक्सलियों को बढ़ावा देना चाहती है कांग्रेस । आरोप ये भी लगाया कि नक्सलियों से रिश्ते रखने के दो आरोपियों के लेटर में दिग्विजय का फोन नंबर मिला । ये भी कहा गया कि पार्टी अपना नाम कांग्रेस-माओवादी कर ले । 

उधर, कांग्रेस नेता दिग्विजय ने इन आरोपों पर कहा- "अगर ऐसा है तो मुझे सरकार गिरफ्तार करे । पहले देशद्रोही, अब नक्सली । इसलिए यहीं से मुझे गिरफ्तार करिए ।"
आपको बता दें कि शिवराज सिंह चौहान ने अपने भाषण में दिग्गी के लिए देशद्रोही शब्द का इस्तेमाल किया था । जिसके बाद भोपाल के टीटी नगर थाने में दिग्विजय गिरफ्तारी देने भी पहुंचे थे । लेकिन मध्य प्रदेश के मुखिया के बयान पर पुलिस ने कोई एक्शन नहीं लिया । पुलिस ने कहा- कोई मामला ही दर्ज नहीं है तो गिरफ्तारी किस बात की ?
अब संबित पात्रा ने 'नक्सली' की ओर इशारा किया है । जरा समझे इस सियासत को और हाल ही मे हुए कुछ घटनाक्रम को ।

- अभी महाराष्ट्र से कई कथित नक्सली समर्थक को पुलिस ने पकड़ा । कई की नजरों में ये मानवाधिकार कर्यकर्ता भी हैं । भारतीय मीडिया में ये शोर ज्यादा है कि प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश का कोई गहरा कनेक्शन जुड़ा हुआ हो सकता है । 
- अभी नोटबंदी को लेकर रिजर्व बैंक ने स्पष्ट किया कि 97 फीसदी पुराने नोट वापस आ गए । मतलब सरकार को अपने ही फैसले पर मुंह की खानी पड़ी । 
- अभी डॉलर के मुकाबले रुपया 70 के पार जा चुका है ।
- अभी राफेल पर  फ्रांस की मीडिया में छपी कथित गड़बड़ी की खबर से भारत में सियासत खौली रही है ।
- अभी एससी-एसटी एक्ट में हुए संशोधन को लेकर पूरे मध्य प्रदेश में बवाल मचा हुआ है । 6 सितंबर को तो भारत बंद का ऐलान भी किया गया है ।

इतनी बातें जानना इसलिए जरूरी है कि इन सबके बाद ही संबित पात्रा का एक उड़ता हुआ नया तीर लोगों के बीच आया है ।
क्या मतलब समझा जाए पहले  'कांग्रेस मुक्त भारत ' का नारा दिया गया था । फिर मकसद पूरा होता दिखा तो इसे एक जुमला कह दिया था । इसी दौरान 'भगवा आतंकवाद' वाले बयान को लेकर दिग्विजय एंटी हिंदू छवि लिए फिरते भी रहे । बीजेपी को इसका भरपूर फायदा भी मिला । लेकिन इस छवि को धोने के लिए दिग्विजय ने नर्मदा में भी डुबकी लगाई । बीजेपी का ऐसा कोई नेता मुझे याद नहीं आता जिसने पैदल नर्मदा परिक्रमा की हो । 
लग यही रहा है कि मुद्दों को छोड़ अब नया मॉडल आकार लेता दिख रहा है । जिसका इस्तेमाल आगामी चुनावों में देखने को मिल सकता है ।  जिस कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में झीरम घाटी नक्सली हमले में कई दिग्गज नेताओं को खोया । उसे इस तरह के नाम से सुसज्जित कर सवालों में खड़ा किया जा रहा है । 
क्या ये ठीक वैसे ही है जैसे पहली बार कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया गया था । या फिर बीजेपी की तरफ से चारा फेंककर देखा गया है कि कितनी 'मछली' इसे पसंद करती है । चला तो चांद तक, नहीं तो शाम तक। ये वही संबित पात्रा हैं जिन्होंने अभी एक टीवी बहस के दौरान मानसरोवर यात्रा पर गए राहुल गांधी को 'चाइनीज गांधी' कहा था ।
आगे आगे देखिए होता है क्या ।। 




Saturday 1 September 2018

कलयुग का 'कर्ण'


इस बार भी नाकाम हूं
अंक पाकर भी गुमनाम हूं
बारी मेरी ऐसी है
पिछली रोटी जैसी है

सपने मेरे महंगे हैं
और क्या मुझे सहने हैं
कलयुग का 'कर्ण 'हूं
भुगत रहा दंड हूं

अब स्वर उठा है
भोर हो 
पुराने नियम बदलने पर
जोर हो

धरती ही नहीं घूमती 
मनुष्य भी चक्कर लगाता है
वर्ण व्यवस्था में शीर्ष वाला भी
शून्य पर आता है

कल तुम थे दुर्बल
माना हम थे सबल
अपना पराभव देख लिया
आरक्षण बहुत झेल लिया

समानता ही मेल है
सियासत तो खेल है
आबादी वाला आबाद है
बाकी की क्या औकात है

- निशांत कुमार 




Wednesday 29 August 2018

आखिर आ ही गया..

(प्यार के परिंदों के लिए ये गीत)

आखिर आ ही गया...

तुमसे किया वादा
मेरे साथ रहा तेरा साया
पर्वत-नदी पार कर
दिन-रात पुकार कर
आखिर आ ही गया...










दिल भी क्या चीज है
ना देखूं तो मिलने की ख्वाहिश है
देख लूं तो खामोशी छाई है
वही तन्हाई बयां करने 
आया हूं..

जानता हूं 
फासलों का इम्तिहान
समझता हूं
बंदिशों का मान
आशिक हूं, आवारा हूं, खुदगर्ज नहीं
ठुकरा भी दो तो हर्ज नहीं
कहने यही आया हूं ...

- निशांत कुमार






Saturday 25 August 2018

नारी तुम्हें शक्ति जगानी होगी

फोटो साभार-google
जगत तुम, जननी मैं
फिर एक पर बंधन क्यों ?
साथ खेले, साथ हुए बड़े
फिर चौखट पर लकीर क्यों  ?

पुरुषार्थ का पाखंड बहुत हुआ
उत्थान के भागीदार हम भी
चूल्हा-चौका नहीं, उससे भी ज्यादा
करने का कर लिया इरादा

जंगल में शिकार की तरह
ज़िस्म को घूरते, भेदते रहते हो
आंखों को नहीं आती लाज
तब मर्यादा नहीं आती याद

साड़ी, समीज के बाद अब फ्रॉक
डायपर पहनी पहुंच रही यमलोक
आबरू का ये क्या अंजाम हुआ ?
क्या रक्षाबंधन नाकाम हुआ ?

बाजू को अब खुद ही उठाना होगा
सिर काट कर काली कहलाना होगा
महिषासुर की धाती भेदनी होगी
नारी तुम्हें शक्ति जगानी होगी 

कब तक सीता बनकर अग्निपरीक्षा दोगी ?
सति बनकर मर्यादा का बोझ ढोओगी
राधा और मीरा की भूमिका का दौर नहीं
दुर्गा हो तुम,  तुमसे बड़ा कोई और नहीं

लाज का ताज नारी के हवाले
मान का मुकुट नर के पाले
सभ्यता की जब ऐसी रीत रही
दु:शासनों की यही जीत रही

जन्म देना ही बड़ा एहसान है
मां से बड़ा क्या नाम है?
बहन की मुस्कान संसार है
भाई तुम्हें किस बात का अभिमान है?

पुरुष से प्रतिस्पर्धा नहीं
श्रद्धा का मान चाहिए
कदम मिलाकर चलने का
स्वाभिमान चाहिए

- निशांत कुमार



Tuesday 21 August 2018

जल का युद्ध घोष

फोटो साभार- Deccan Chronicle
(केरल बाढ़ त्रासदी पर कविता)
धरा भरी है
डर की घड़ी है
ये जल का युद्ध घोष है
मनुष्य बता किसका दोष है ?

बूंदे बेरहम हो गई
खेत की रौनक ले गई
बचे बाजुओं में वो दम कहां ?
नीर को रोके, वो कृष्ण कहां ?

घन का कोप 
सरि की विवशता
अरण्य को लूटने वाले  
जीवों में श्रेष्ठ तुम कैसे कहलाए ?

नदियों को तुमने बंदी बनाया
स्वार्थ में सबका मज़ाक उड़ाया
तुम प्रलय को ललकारते रहे
विज्ञान से उसे डराते रहे

कैसा मंजर अब पसर रहा ?
कचरा घर में सड़ रहा
पड़ गए हैं शक्य के लाले
हाथों में हैं गंदे पानी के प्याले

जीवन तुम्हे बख्स देंगे
करो वादा, अति नहीं करेंगे
सत्व तुम्हारी जगत पर नही चलेगी
मनमानी पर सज़ा मिलेगी

- निशांत कुमार

.....................................
शक्य- अनाज
कोप- गुस्सा
घन- बादल
सरि- नदी
सत्व- जोर





Sunday 19 August 2018

आज ही आया था गुलामी का पहला सिक्का

19 अगस्त 1666 को औरंगजेब की कैद से शिवाजी मुक्त हुए! शिवाजी फल की टोकरी में छिपकर बाहर निकले !
और इसी दिन,कलकत्ता (अब कोलकाता) में 19 अगस्त 1757 को ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहला सिक्का ढाला । भारत में  सिक्के तो पहले भी बने । लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी इसे चलन में ले आई ।

बंगाल के नवाब के साथ एक संधि के तहत ईस्ट इंडिया कंपनी ने साल 1757 में टकसाल बनाई थी ।  तब कंपनी को बिहार और बंगाल में कमाई करने के अधिकार दिए गए थे ।
तब उत्तर भारत के अधिकांश इलाकों पर मुगलों का राज था । उसके बाद मराठा और राजपूत का वर्चस्व था । ईस्ट इंडिया कंपनी के दायरे में मद्रास प्रेसिडेंसी, बॉम्बे प्रेसिडेंसी और बंगाल प्रेसिडेंसी थे । इसलिए यहां  इन्होंने अपने सिक्के जारी किए । ब्रिटिश सिक्के साल 1950 तक देश में चलन में थे ।

कुछ समय तक भारत में 'आना' सिस्टम चला जिसमें- 1 आना, 2 आना, 1/2 आना के सिक्के चलते थे । एक रुपया 16 आना यानी 64 पैसे का मिलकर बनता था । एक आना का मतलब 4 पैसे होता था ।

एक पैसे का सिक्का 1957-1972 के बीच चलन में थे । इन पर 2011 में बैन लगा दिया गया ।
1964-1972 के बीच 3 पैसे के सिक्के ढाले गए । साल 2011 में इन्हें बंद कर दिया गया ।
1957-1994 के बीच 5 पैसे के सिक्के ढाले गए । 2011 में इन्हें भी चलने से बैन कर दिया गया ।
25 पैसा 1957-2002 के बीच ढाले जाते रहे । लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने चवन्नी को बंद कर दिया ।
साल 1962 से चलन  एक रुपये का सिक्का चलन में आया जो आज भी चलता है।

2 रुपये का सिक्का 1982 से चलन में आया और 5 रुपये का सिक्का 1992 से चलन में आया था । इसके अलावा साल 2006 से सरकार ने 10 रुपये का सिक्का भी देश में जारी कर दिया ।

8 नवंबर 2016 को तो भारत ने नोटबंदी भी हुई । 500 और 1 हजार के पुराने नोट चलन में बंद कर दिए गए । 500 और 2 हजार के नए नोट जारी किए गए । फिर 200 रुपए के नोट भी छपे ।



Saturday 18 August 2018

अटल जी के वो अधूरे सपने..

फोटो साभार- The Hindu
ऐसा नहीं है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के सपने पूरे नहीं किए । उन्होंने कई फैसले लिए जो आज भी योजना के रुप में जारी हैं । लेकिन कुछ काम उनके अधूरे भी हैं । देश की प्रमुख नदियों में अटल जी की अस्थियां विसर्जित होंगी । मगर उनकी नदी जोड़ो योजना अधूरी है । ये उन सपनों में शामिल है जिसे अटल पूरा होते देखना चाहते थे- 

संविधान संशोधन का अधूरा सपना:
संविधान में संशोधन की आवश्यकता पर विचार करने के लिए 1 फरवरी, 2000 को संविधान समीक्षा के राष्ट्रीय आयोग का गठन किया गया । 6 महीने का वक्त दिया गया। उस वक्त ये अंदेशा जताया गया था कि जिस संविधान को तैयार करने में तीन साल के करीब वक्त लगा उसकी समीक्षा छह महीने में कैसे होगी ? लेकिन  249 सिफारिशें सामने आईं । सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश एम एन वेंकटचलाइया के अगुवाई वाले आयोग ने रिपोर्ट तैयार की थी । पर इसका बड़े पैमाने पर विरोध हुआ , जिसके बाद ये काम भी आगे नहीं बढ़ पाया ।

नदी जोड़ो योजना:
नदी जोड़ो योजना में गंगा सहित 60 नदियों को जोड़ने की योजना थी । इरादा था कि इससे कृषि योग्य लाखों हेक्टेयर भूमि की मानसून पर निर्भरता कम हो जाएगी । एक कार्य दल का गठन भी किया गया । परियोजना को दो भागों में बांटने की सिफारिश की गई । पहले हिस्से में दक्षिण भारतीय नदियां शामिल थीं जिन्हें जोड़कर 16 कड़ियों की एक ग्रिड बनाई जानी थी । दूसरे में  गंगा, ब्रह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियों के पानी को इकट्ठा करने की योजना बनाई गई । लेकिन तब तक 2004 में यूपीए की सरकार आ गई ।  मामला फिर ठंडे बस्ते में चला गया ।

अयोध्या का हल:
साल 1999 से 2004 के दौरान एनडीए की सरकार में अटल ने अयोध्या बाबरी विवाद को सुलझाने के लिए कोशिशें शुरू की । कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वती ने साल 2010 में दावा किया था कि वह अयोध्या मामले का हल निकालने के करीब पहुंच गए । लेकिन सुप्रीम कोर्ट में इससे जुड़ा मामला पहुंचने की वजह से ये खटाई में पड़ गई ।

पड़ोसी के साथ शांति:
21 फरवरी 1999 में पाकिस्तान में दिए अपने भाषण में अटल ने कहा था- पाकिस्तान फले फूले हम चाहते हैं और हम फलें-फूलें यह आप भी चाहते होंगे । इतिहास बदला जा सकता है, मगर भूगोल नहीं बदला जा सकता ।आप दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं बदल सकते, तो अच्छे पड़ोसी के नाते रहें। अटल ने रिश्ते सुधारने की दिशा में दिल्ली लाहौर बस सेवा शुरू की । खुद सवार होकर जोखिम भरा सफर तय कर पाकिस्तान पहुंचे । लेकिन बाद में उन्हें करगिल युद्ध का सामना करना पड़ा । फिर भी बड़ा दिल दिखाया युद्ध के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले परवेज मुशर्रफ़ को आगरा बुलाया ।

कश्मीर समस्या का हल:
कश्मीर को लेकर अटल बिहारी वाजपेयी के फॉर्मूले की कई बार बात सामने आ चुकी है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने हालिया भाषण में कश्मीर की समस्या को सुलझाने के लिए वाजपेयी के रास्ते पर चलने की बात कही है । माना जाता है कि आगरा शिखर सम्मेलन में मुशर्रफ़ और वाजपेयी ने कश्मीर की समस्या का हल निकाल ही लिया था । लेकिन ये भी सफल नहीं हो सका ।





Tuesday 14 August 2018

तीन रंग और चक्र नहीं है ये, पूरा भारत है

ये सिर्फ रंग नहीं हैं । इसमें पूरा भारत है । केसरिया रंग  त्याग और बलिदान का प्रतीक है । सफेद रंग सत्य, शांति और प‌वित्रता का प्रतीक है । हरा रंग समृद्धता को दर्शाता है । और अशोक चक्र है न्याय का प्रतीक ।

आइए जानते हैं हमारे तिरंगे झंडे का सफर- 

7 अगस्‍त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कोलकाता में फहराया गया था । इस ध्‍वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था।


1906

1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट में मैडम भीकाजी कामा ने दूसरा झंडा फहराया ।


1907
1917 में डॉक्टर एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने कोलकाता में होम रूल आंदोलन के दौरान तीसरा झंडा फहराया। 
1917
1921 में पिंगली वेंकैया ने हरे और लाल रंग का इस्तेमाल करते हुए झंडा तैयार किया । जो हिंदू और मुस्लिम वर्ग का प्रतीक था ।


1921
1921 में गांधी जी के सुझाव के बाद इसमें सफेद रंग की पट्टी और चक्र को जोड़ा गया, जो अन्य समुदाय के साथ देश की प्रगति का प्रतीक थे । फिर 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर तिरंगे को अपना लिया...
1931
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्‍त भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया। 


वर्तमान में



Monday 13 August 2018

आज़ादी का पट्टा है



फोटो आभार- गूगल
स्वाद बहुत खट्टा है
आज़ादी का पट्टा है
बस साल गए बीत
उपनाम की वही है रीत

आरक्षण पर दंगल है
नारी पर सोच भी तो जंगल है
बस हाल की बची है खाल
वहीं पड़े है स्कूल-अस्पताल

अब भी बंटने का जख्म
 सुनते हैं वही सियासी नज़्म
टोपी-चंदन में बंट गए
आज़ाद सोच से कट गए

देशभक्ति का दौर देखो
गद्दार कहने की होड़ देखो
जिसने लड़ी मातृभूमि की जंग
उसी पर सियासत है बुलंद 

कर्कश बहुत स्वर है
फिर भी इस पर गर्व है
कौन है बदलने को तैयार ?
मन को दुखी करते ये विचार 

- निशांत कुमार




Saturday 11 August 2018

अमेरिका की 'आसमानी' सेना, सपने हकीकत की ओर

70 के दशक में हिंदुस्तान में Satellite Instructional Television Experiment (SITE) चर्चा में था । टेलीविजन में प्रयोग हो रहा था । इसी समय अमेरिका में साइंस फिक्शन हॉलीवुड फिल्म स्टार वार- ए न्यू होप आई थी । यानी उस समय अमेरिकी सोच हमसे कहीं आगे थी । 

आज भी है । हम राफेल फाइटर डील पर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में उलझे हैं । हम एक डिफेंस डील करते हैं और फिर उसे चुनावी मुद्दा बनते देखते हैं । लेकिन अमेरिका स्पेस आर्मी के गठन की बात कर रहा है । 2020 तक यूएस स्पेस फोर्स के गठन की बात कही जा रही है । 

pic courtesy- The helios

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उप राष्ट्रपति माइक पेंस की इस घोषणा के बाद ट्वीट कर लिखा कि स्पेस फोर्स आ रही है। ट्रंप ने इस स्पेस फोर्स की प्रक्रिया को अपने 2020 के रीइलेक्शन कैंपेन से भी जोड़ दिया है ।

tweet

चीन और रूस से प्रतिद्धंदिता कह लें या फिर डर कि अमेरिका अंतरिक्ष को एक नया रणक्षेत्र बनाने जा रहा है ।
अंतरिक्ष तक पहुंच भारत की भी है । मंगल मिशन पर जाकर हमने अपनी तैयारियों से दुनिया को परिचित करा तो दिया है । लेकिन हमारे यहां सत्ता तक पहुंचने का रास्ता डिफेंस डील, महंगाई, वोटों का ध्रुवीकरण ही है । स्पेस-उस्पेस तक जब पहुंचेंगे तब पहुंचेंगे । हमारी गति ऐसी है कि हम जब विश्व गुरु होंगे तब अमेरिका यूनिवर्स गुरु होगा । 

कुछ विश्लेषक का ये भी कहना है कि अमेरिका जिस होड़ की शुरुआत कर रहा है वो खतरनाक है । कुछ ये भी मानते हैं कि ये ज्यादा खर्चीला भी है । जिसका असर अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है । फिर तो चीन-रूस के लिए अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती देना और आसान हो जाएगा । 

वैसे अभी यूएस स्पेस फोर्स पर 'कांग्रेस' की अंतिम मुहर लगनी बाकी है । लेकिन इससे हमें क्या सीख मिलती है । यही कि राजनीति में सपने ही बेचे जाते रहे हैं । हमे सपना दिखाया गया बुलेट ट्रेन का, स्मार्ट सिटी का । और अमेरिकियों को स्पेस फोर्स का दिखाया जा रहा है ।

मैं इस तर्क को भी खारिज नहीं करता कि स्पेस से आने वाली चुनौतियां नहीं हैं । अमेरिका ने अगर इतने खर्चीले फोर्स बनाने की सोची है । तो उसके लिए फंड कहां से आएंगे ये भी जरूर ही सोचा होगा । 

अब थोड़ा फिल्मी हो जाइए । और सोचिए यूएस स्पेस फोर्स के बारे  में । ये किस तरह स्टार वार, अवतार जैसी फिल्मों से अलग होगा । इसकी ब्रेकिंग न्यूज धरती पर किस अंदाज में पढ़ी जाएगी । मैं तो पॉपकॉर्न खाते हुए ही ये न्यूज देखना चाहूंगा ।



Thursday 9 August 2018

'अजनबी' तेरी ही थी कमी...


भारत में अभी 'स्ट्रेंजर ऑन रेंट' का चलन नहीं है । लेकिन वो दिन आने में कितना समय लगेगा, जब हम जापान की बुलेट ट्रेन को प्लेटफॉर्म से खड़े होकर आने वाली ट्रेन की तरह झांक कर देख रहे हैं...ट्रेन लेट है लेकिन बुलेट आ तो रही है न...जापान में ही 50 वर्षीय ताकानोबु निसीमोतो ने 2012 में ऑनलाइन ओसान रेंटल सर्विस शुरू की ।
Courtesy- CNN
अधेड़ मर्दों को रेंट पर देने की सर्विस ।ये अब धीरे-धीरे लोकप्रिय हो गई है । हालांकि इसे फिजिकल डिमांड से दूर रखा गया है। कहा जा रहा है ऐसे पुरुष मार्गदर्शन, भावनाओं के आदान-प्रदान के लिए काम करते हैं । 
सवाल एक ही है कि आखिर पैसे देकर कोई क्यों अजनबी के संग वक्त बीताना चाहेगा ? अधेड़ मर्द किराए पर लेना क्यों चाहेगा ?
सबसे पहले तो हमे उस बदलाव पर नजर डालना पड़ेगा जो इस तरह के बिजनेस आइडिया का जन्मदाता है ।
जापान में 40 पार कर चुके लोगों की निजी जिंदगी से निकले अनुभव ये भी है कि अगर आपकी जिंदगी में कुछ दिलचस्प ना होता रहे, तो आप मानसिक रूप से मर जाएंगे...लोग गंभीरता से जीते-जीते अपना नजरिया सीमित कर लेते हैं..
दरअसल ये महानगरीय जीवनशैली से पनपी विडंबनाएं हैं ।

कुछ ध्यान देने वाली बातें ये भी हैं-
1. जान-पहचान वाले में बात करने पर बात फैलने का डर का बढ़ना
2. बढ़ते अकेलेपन की मानसिक जरूरतें
3. भावनाओं की वेदना को हंसी-हंसी झेलने वाला
और
4. एक बार बात करने के बाद गले नहीं पड़ने का तनाव

स्ट्रेंजर ऑन रेंट भी इसी वजह से आई है । जीवन रुकता जो नहीं है । बहता है । किसी न किसी रुप में बहेगा । उसे पोषित करने लिए नई-नई चीजें भी सामने आ जाएंगी ।
ऐसा भी कह सकते हैं कि मर्जी का मामला जब बढ़ जाए । तो फिर ढंग बदल जाते हैं ।
एक रिसर्च के मुताबिक जापान में ऐसे यूथ की संख्या तेजी से बढ़ रही जो शादी नहीं करना चाहते ।

लेकिन अजनबी के साथ होना और किराए पर अजनबी को लेने में बहुत अंतर है ? अजनबी बहुत प्यारा भी लगता है । बिल्कुल गाने की तरह- ओ अजनबी तेरे लिए...मेरी जिंदगी में अजनबी का इंतजार है । लेकिन जैसे इसकी एंट्री होती है और जान पहचान बढ़ता है । राय बदल जाती है । दोनों का एक-दूसरे के प्रति नजरिया भी ।

कभी-कभी अजनबी घातक भी साबित होता है । भारत जैसे देश में होने वाली रेप की घटनाएं अजनबी से डराती हैं । जापान में शायद ये डर कम हो । पर 'किराए से मिलने वाले अजनबी' में डर वाली बात न के बराबर ही होती है । क्योंकि यहां कीमत चुकाई जाती है । रेंट पर आने वाला अजनबी एक इम्प्लाई ही होता है ।
खैर मनाइए,  नए तरह के इस बिजनेस की । एक अलग चाहत की । चाहत से याद आया- वो 'लिव इन रिलेशन' के किस्सों की । पहले इस रिश्ते में प्यार होता है, फिर कथित बलात्कार..और मामले थाने जाने लगते हैं.. 

लेकिन जापान वाला ये ट्रेंड बिल्कुल अलग है । इसमें नयापन भी है । वैसे इसके बारे में भी आगे सुन ही लेंगे । भारतीय वर्जन की कहानियां भी आ ही जाएंगी । और क्या कहूं । उनके लिए गाना गुनगुना देता हूं जो संस्कृति का झंडा लिए खड़े हैं-

आया समय बड़ा बेढंगा
नर होकर नाच रहा नंगा
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान..
कितना बदल गया इंसान ?



Wednesday 8 August 2018

अब नहीं गूंजता

अब नहीं गूंजता 
संसद में

अब भी रहता हूं
खेत में, फुटपाथ पर
दम घुटता है
अस्पताल में, ट्रेन के डिब्बों में
सौ. गूगल










अब नहीं गूंजता 
संसद में 

दिखता हूं
कार की कांच से बाहर
उस झुग्गी में
रहता हूं
राशन की कतार में
मुआवज़े की आस में

अब नहीं गूंजता 
संसद में

बहता हूं
नारी अस्मिता के आंसू में
गंगा की धार में
बेरोजगारों के विचार में

अब नहीं गूंजता 
संसद में

खामोश हूं
टकटकी लगाए आंखों में
चेहरे पर खिंचती लकीरों में 
क्रोध के दबे अंगारों में
बदहवास से सवालों में 

अब नहीं गूंजता 
संसद में

- निशांत कुमार




Monday 6 August 2018

दोस्त मेरा नेता है...


दोस्त मेरा नेता है
टिकट की आस में बैठा है

मेहनत में उसका तोड़ नहीं
फिर भी दल में शोर नहीं
 बात करूं तो उसकी
मुस्कुराता है
दूसरे की बात पर
मुहं बनाता है

दोस्त मेरा नेता है
टिकट की आस में बैठा है

सफेदी में जब से गया वो लौट
कुर्ता, पाजामा और हाफ कोट
कमीज, पेंट और जूते का बदल गया रंग
बोलने का भी  बदल गया उसका ढंग

दोस्त मेरा नेता है
टिकट की आस में बैठा है

दिखाता है 
दिल्ली में है उसकी पैठ
गाड़ी भी है बुलेट 
कहता है
चर्चा है उम्मदवारी की
इस बार जश्न तैयारी की

दोस्त मेरा नेता है
टिकट की आस में बैठा है

सुनने में आया 
टिकट कोई और ले गया
ताल ठोंक रहा था
मैदान कोई और मार गया

अब बर्दाश्त से बाहर हुआ
गुस्से से वो पागल हुआ
बदल लिया उसने पाला 
सोचा खुलेगा किस्मत का ताला

दोस्त मेरा नेता है
टिकट की आस में बैठा है

कतार यहां भी लंबी है
लगता है ये मंडी है
मेहनत का क्या मोल है ?
चिंता मत कर दोस्त 
फल जो मिले वही अनमोल है

दोस्त मेरा नेता है...

- निशांत कुमार

Saturday 4 August 2018

2018 में 1971 का 'बेरोजगारों का गीत'


4 अगस्त को मध्य प्रदेश के जिलों में रोजगार मेलों की धूम रही । सरकारी तंत्र की मुस्कान से लगा कि बेरोजगारी को दूर करने के सार्थक प्रयास किए जा रहे हैं । राजनीति में पक्ष और विपक्ष की जंग तो चलती रहेगी  लेकिन शिवराज सरकार की मंशा अच्छी है ।
जब जितेंद्र माथुर ने अपनी आपबीती सामने रखी । फिर ज्यादा देर तक रोजगार मेले का असर जेहन में नहीं रह पाया ।

'रोजगार के नाम पर सरकार ठग रही है'
कैसे ?
'अभी देखो ये परीक्षा भी निरस्त हो गई'
कौन-सी ?
अरे मैंने फॉर्म भरा था.. 

मध्य प्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी लिमिटेड के तहत प्लांट एसिस्टेंड फॉर इलेक्ट्रिक पद के लिए परीक्षा होनी थी । उसे निरस्त कर दिया गया । चार-पांच दिन बीत चुके । कोई सूचना भी नहीं दी गई । परीक्षा के लिए जो 1000 रुपए फीस भरी थी उसका भी फिलहाल अता-पता नहीं है ।


 

जाहिर है अकेले जितेंद्र ही चिंता में नहीं है । संख्या हजारों में होगी । या फिर ज्यादा भी । इन लोगों का रोजगार का सपना अब सस्पेंस के हवाले है । और उधर रोजगार मेले से नए सपने दिखाने की शुरुआत भी कर दी गई है । लेटर ऑफ इंटेंट बांटे गए हैं । 

भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में शुमार है । लेकिन रोजगार के नाम पर हवा-हवाई ही है ।
और क्या कहूं...2018 में 1971 में आई फिल्म मेरे अपने में गुलजार का लिखा गीत ही गुनगुना लेता हूं...

''हाल चाल ठीक ठाक है, सब कुछ ठीक ठाक है
B.A.किया है, M.A.किया, लगता है वो भी अंयवय किया
काम नहीं है, वरना यहाँ, आप की दुआ इस सब ठीक ठाक है...''




Friday 3 August 2018

जमाना 'किकी'या रहा है (Kiki do you love me.) ...



चलती कार से निकलती हुई युवती
चलती कार के सामने डांस, फोटो सभार सोशल मीडिया






नये दौर का नया डांस
'किकी' पर लोग मार रहे चांस
चैलेंज का चढ़ा बुखार
हादसे का हो रहे शिकार

अमेरिका से आया है ये किकी
लोगों में बजने लगी सिटी
बच्चे. बूढे और नौजवान
कर रहे सब रोड पर डांस

चलती कार से निकलकर  
कला और क्रेज का प्रदर्शन
सच कहूं तो
ये अब बन गया है टेंशन

वायरल किकी का लगा रोग 
खंभों से टकराते, गिरते लोग
वाहन की चपेट में आने का डर
नहीं मानोगे तो जाओगे मर

दीवानगी डर से बड़ी
डांस रोके क्यों कोई 
कला से नहीं बैर
सलामत रहो, खैर 
(- निशांत कुमार)


क्या है 'किकी' ?

रैपर ड्रेक के गाने-  'किकी डू यू लव मी'- की इन दिनों धूम मची हुई है । इस गाने पर डांस चैलेंज का अमेरिका से लेकर भारत तक में भूचाल है । किकी डांस चैलेंज के तहत लोग ड्राइविंग सीट छोड़कर चलती कार से उतरकर डांस शुरू कर देते हैं। फिर डांस करते हुए अपनी सीट पर बैठ जाते हैं। इस दौरान कार की स्पीड 10 किमी प्रति घंटे रहती है । इतना ही नहीं कार में बैठा हुआ दूसरा साथी वीडियो बनाता है। ऐसे वीडियो को लोग सोशल मीडिया पर खूब शेयर कर रहे हैं।  किकी बेहद खतरनाक है और इससे कई तरह के हादसे हो चुके हैं..उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, मुंबई सहित कई राज्यों की पुलिस के लिए 'किकी डांस चैलेंज' सिरदर्द बन चुका है। वहीं, पुलिस अब सोशल मीडिया पर इस चैलेंज को रोकने के लिए अभियान चला रही है






Wednesday 1 August 2018

सफाई का अतिवाद !


सफाई बहुत अच्छी आदत है । इसे अपने संस्कार में शामिल किया ही जाना चाहिए । लेकिन सफाई को लेकर हद पार करना अजीब है ।
चीन के फुजान की तस्वीर, फोटो सौजन्य-google

चीन में यूरिनल में खाना खाने की तस्वीर वायरल हुई है । कहा जा रहा है कि फुजान में एक कंपनी कर्मचारियों से सफाई को लेकर कमिटमेंट चेक कर रही थी । इस तरह तो ये गंदा ही कहा जाएगा । चाहे वो यूरिनल कितना ही क्लीन क्यों न हो ? 
आपका अंडरवियर तौलिया नहीं बन सकता । मुंह पोंछने के लिए तौलिया, रुमाल है । 

यूरिनल में खाना खाने पर यहां बवाल है । मगर कुछ होटल तो टॉयलेट थीम पर ही खुले हैं । जहां ऐसे बर्तनों में खाना खाने की होड़ भी है । 
मास्को का एक रेस्त्रां


ताइवान का एक रेस्त्रां






अहमदाबाद का एक कैफे











विचित्र कहकर किसी चीज का लुत्फ उठाने का ये ट्रेंड भी खूब है । किसी को ये अच्छा लगता है तो कई को नहीं । ये चलन अतिवाद की ओर इशारा नहीं तो क्या है ?  

वैसे इंडिया में भी स्वच्छता को लेकर सजगता बढ़ी है । अच्छी बात है । लेकिन जो नई-नई जागरूरकता से लबरेज है उनका अतिवाद भी बढ़ रहा है ।

लोग आवारा कुत्तों से ये उम्मीद करने लगे हैं कि वो अपना पिछवाड़ा ना दिखाएं । लोग पक्षियों से भी उम्मीद करने लगे हैं कि वो यहां-वहां ना करें । 
अपार्टमेंट में रहने वाले एक सज्जन से तो ये कहते सुना कि बारिश में ठीक से ऊपर जाया करो सीढ़ियों पर पैर के छाप पड़ जाते हैं ।
ऐसी सोच कहां ले जाएगी ? चीन के फुजान शहर की कंपनी की तरफ ही न । 
स्वच्छ समाज बनाइए, अतिवाद नहीं । बाकी तो सब समझदार है ही ।



Tuesday 31 July 2018

प्रेमचंद सबके फेवरेट

मुझे कहानी पढ़ने की आदत प्रेमचंद ने ही लगाई । हिंदी का मतलब पहले मेरे लिए प्रेमचंद ही था । फिर बाद में कई और नाम जुड़े- रामधारी सिंह दिनकर, मैथिलीशऱण गुप्त, निराला, अज्ञेय, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, मनु भंडारी, रामवृक्ष बेनीपुरी, हरिवंशराय बच्चन, हजारीप्रसाद द्विवेदी, सुभद्राकुमारी चौहान, माखनलाल चतुर्वेदी- कई नाम हैं ।
इन सबमें सबसे सरल और मन में बैठ जाने वाली लेखनी प्रेमचंद की कही जा सकती है । छोटे-छोटे वाक्य, देशी मुहावरे, ग्रामीण परिवेश का चित्रण और पात्र  । कहानी को कहना प्रेमचंद के बेहतर शायद ही किसी को आएगा । 
कुछ यादगार अंश-
जन्म- 31 जुलाई 1880

(ईदगाह)
‘यह चिमटा कहाँ था?’
‘मैंने मोल लिया है.’
‘कै पैसे में?’
‘तीन पैसे दिए.’
अमीना ने छाती पीट ली. यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दोपहर हुआ, कुछ खाया, न पिया. लाया क्या, चिमटा. सारे मेले में तुझे और कोई चीज़ न मिली जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया?
हामिद ने अपराधी-भाव से कहा-तुम्हारी ऊँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, इसलिए मैंने इसे लिया.
बुढ़िया का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है. यह मूक स्नेह था, खूब ठोस ।

(ठाकुर का कुआं)
साहू का कुऑं गॉँव के उस सिरे पर है, परन्तु वहॉं कौन पानी भरने देगा ? कोई कुऑं गॉँव में नहीं है। जोखू कई दिन से बीमार हैं । कुछ देर तक तो प्यास रोके चुप पड़ा रहा, फिर बोला-अब तो मारे प्यास के रहा नहीं जाता । ला, थोड़ा पानी नाक बंद करके पी लूं । गंगी ने पानी न दिया । खराब पानी से बीमारी बढ़ जाएगी इतना जानती थी, परंतु यह न जानती थी कि पानी को उबाल देने से उसकी खराबी जाती रहती हैं । बोली-यह पानी कैसे पियोंगे ? न जाने कौन जानवर मरा हैं। कुऍ से मै दूसरा पानी लाए देती हूँ। जोखू ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा-पानी कहॉ से लाएगी ? ठाकुर और साहू के दो कुऍं तो हैं। क्यो एक लोटा पानी न भरने देंगे? ‘हाथ-पांव तुड़वा आएगी और कुछ न होगा । बैठ चुपके से । ब्राह्मण देवता आशीर्वाद देंगे, ठाकुर लाठी मारेंगे दर्द कौन समझता है !

(उपन्यास- गोदान)
हर एक गृहस्थ की भाँति होरी के मन में भी गऊ की लालसा चिरकाल से संचित चली आती थी। यही उसके जीवन का सबसे बड़ा स्वप्न, सबसे बड़ी साध थी। बैंक के सूद से चैन करने या जमीन खरीदने या महल बनवाने की विशाल आकांक्षाएँ उसके नन्हें-से हृदय में कैसे समातीं !

प्रेमचंद ने 300 से अधिक कहानियाँ, कई उपन्यास, 3 नाटक, कई अनुवाद, बाल-पुस्तकें तथा लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की ।


विनम्र श्रद्धांजलि

मेरी पहली किताब (MY FIRST BOOK)

साथियों, मैं ब्लॉग कम ही लिख पाता हूं, इसलिए नहीं कि लिखना नहीं चाहता । दरअसल मैंने लिखने का सारा वक्त अपनी किताब को दे दिया । एक विद्यार्थी...