Tuesday 31 July 2018

प्रेमचंद सबके फेवरेट

मुझे कहानी पढ़ने की आदत प्रेमचंद ने ही लगाई । हिंदी का मतलब पहले मेरे लिए प्रेमचंद ही था । फिर बाद में कई और नाम जुड़े- रामधारी सिंह दिनकर, मैथिलीशऱण गुप्त, निराला, अज्ञेय, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, मनु भंडारी, रामवृक्ष बेनीपुरी, हरिवंशराय बच्चन, हजारीप्रसाद द्विवेदी, सुभद्राकुमारी चौहान, माखनलाल चतुर्वेदी- कई नाम हैं ।
इन सबमें सबसे सरल और मन में बैठ जाने वाली लेखनी प्रेमचंद की कही जा सकती है । छोटे-छोटे वाक्य, देशी मुहावरे, ग्रामीण परिवेश का चित्रण और पात्र  । कहानी को कहना प्रेमचंद के बेहतर शायद ही किसी को आएगा । 
कुछ यादगार अंश-
जन्म- 31 जुलाई 1880

(ईदगाह)
‘यह चिमटा कहाँ था?’
‘मैंने मोल लिया है.’
‘कै पैसे में?’
‘तीन पैसे दिए.’
अमीना ने छाती पीट ली. यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दोपहर हुआ, कुछ खाया, न पिया. लाया क्या, चिमटा. सारे मेले में तुझे और कोई चीज़ न मिली जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया?
हामिद ने अपराधी-भाव से कहा-तुम्हारी ऊँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, इसलिए मैंने इसे लिया.
बुढ़िया का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है. यह मूक स्नेह था, खूब ठोस ।

(ठाकुर का कुआं)
साहू का कुऑं गॉँव के उस सिरे पर है, परन्तु वहॉं कौन पानी भरने देगा ? कोई कुऑं गॉँव में नहीं है। जोखू कई दिन से बीमार हैं । कुछ देर तक तो प्यास रोके चुप पड़ा रहा, फिर बोला-अब तो मारे प्यास के रहा नहीं जाता । ला, थोड़ा पानी नाक बंद करके पी लूं । गंगी ने पानी न दिया । खराब पानी से बीमारी बढ़ जाएगी इतना जानती थी, परंतु यह न जानती थी कि पानी को उबाल देने से उसकी खराबी जाती रहती हैं । बोली-यह पानी कैसे पियोंगे ? न जाने कौन जानवर मरा हैं। कुऍ से मै दूसरा पानी लाए देती हूँ। जोखू ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा-पानी कहॉ से लाएगी ? ठाकुर और साहू के दो कुऍं तो हैं। क्यो एक लोटा पानी न भरने देंगे? ‘हाथ-पांव तुड़वा आएगी और कुछ न होगा । बैठ चुपके से । ब्राह्मण देवता आशीर्वाद देंगे, ठाकुर लाठी मारेंगे दर्द कौन समझता है !

(उपन्यास- गोदान)
हर एक गृहस्थ की भाँति होरी के मन में भी गऊ की लालसा चिरकाल से संचित चली आती थी। यही उसके जीवन का सबसे बड़ा स्वप्न, सबसे बड़ी साध थी। बैंक के सूद से चैन करने या जमीन खरीदने या महल बनवाने की विशाल आकांक्षाएँ उसके नन्हें-से हृदय में कैसे समातीं !

प्रेमचंद ने 300 से अधिक कहानियाँ, कई उपन्यास, 3 नाटक, कई अनुवाद, बाल-पुस्तकें तथा लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की ।


विनम्र श्रद्धांजलि

Monday 30 July 2018

जब मैं पहुंच गया चीन


रात जब घर पहुंचा तो सोचा कुछ लिखूंगा । लेकिन नींद ने इस इच्छा को पूरी नहीं होने दिया । सो गया । खबर भी नींद में घूमती रही ।
अखबार में टाइम्स के हवाले से एक खबर पढ़ी तो जैसे मैं चीन ही पहुंच गया । लिखा था- #metoo कैंपेन पर सरकार की नजर ।
भाई बुलेट ट्रेन वाले देश में ऐसा होता होगा । दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में महिलाओं की इस कैंपेन से भला क्या एतराज होगा ?

फिर सीन चेंज हो गया । सपने में आप कब-कहां पहुंच जाते हैं । इस पर शोध हो तो शायद टाइम मशीन वाली पहेली सुलझ जाए ।
चीन की चिंता लिए मैं पहुंच गया लिच्छवियों (बिहार) के पास । बौद्धकालीन समय में । फिर तो एक बार चीन पहुंच जाऊं । फिर भारत । तुलना भी शुरू हो गई । भारत का लोकतंत्र क्या है ? और चीन का साम्यवाद क्या है ? 
सौजन्य-google

चीन में  साम्यवादी दल की स्थापना 1921 से हुई । भारत में लोकतंत्र लिच्छवी गणराज्य (बिहार) समय से है । जिसका संबंध छठी शताब्दी ई.पूर्व से है । 
सोशल मीडिया पर चीन अपने नागरिकों के पोस्ट की मॉनिटरिंग करता है । पोस्ट डिलीट भी करता है । वहां महिलाओं द्वारा चलाए गए  #metoo कैंपेन के दौरान हजारों पोस्ट चीन ने डिलीट किेए हैं । #metoo कैंपेन सबसे पहले 2017 में अमेरिका से शुरू हुआ । भारत में भी #metoo कैंपेन चलाया गया । यहां किसी ने कोई मॉनिटरिंग नहीं की । 

चीन में नागरिक सरकार के खिलाफ खुलकर बात नहीं करते । भारत में अभिव्यक्ति की आजादी इस कदर है कि यहां जनता जिसे चाहे ट्रोल कर देती है । कई उदाहरण हैं । 

चीन में मीडिया पर सेंशरशिप है । भारत में कुछ मामलों को छोड़ दें तो मीडिया जनता की आवाज है । हमारे संविधान ने अभिव्यक्ति की आजादी दी है । ये जनता का मौलिक अधिकार भी है ।

भारत में हर पांच साल में चुनाव होते हैं । लेकिन चीन ने आजीवन अपना नेता चुन लिया है । शी जिनपिंग वहां के राष्ट्रपति हैं ।
चीन के राजनीतिक फैसलों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी भी दखल देती है । जबकि भारत में संसद की सहमति ही सबकुछ है ।
चीन की हमेशा से ही विस्तारवादी नीति रही है । जबकि भारत की हमेशा से शांति की नीति रही है । भारत ने पड़ोसियों पर कभी युद्ध की पहल नहीं की ।

चीनी में कोई स्वतन्त्र न्यायपालिका नहीं है। हालांकि 1970 के आस-पास यूरोपीय न्याय प्रणाली के आधार पर एक प्रभावशाली विधिक प्रणाली विकसित करने की कोशिश की गई । लेकिन न्यायपालिक साम्यवादी दल के अधीन ही है। इस प्रणाली के दो अपवाद हैं- हांगकांग और मकाउ । जहां क्रमश: ब्रिटिश और पुर्तगाली न्यायपालिका व्यवस्था है ।

चीन से उलट भारत में न्यायपालिका स्वतंत्र है । यहां सुप्रीम कोर्ट तक व्यक्ति को जाने का अधिकार है । कोर्ट के फैसलों पर राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं है ।

सपना टूटा तो सुबह हो चुकी थी । इस दौरान कई बार  चीन गया । अब चाउमीन की याद आ रही है । भारत में हॉकर्स पर खूब खाई है । कॉलेज में शाम को इसे खाने का जैसे चस्का सा लग गया था । पत्रकार के तौर पर भी कभी-कभी इसे खा ही लेता हूं । और कभी- कभी चीन भी पहुंच जाता हूं । ऐसे कई बार चीन होकर आ चुका हूं ।  ब्रूस ली, जैकी चैन, जेटली और वो उस अभिनेता का क्या नाम है ?...हां यार वही... 



Sunday 29 July 2018

बहुत दहाड़ता था

(अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस पर)

बहुत दहाड़ता था
साला
अब उठके दिखा

अरे धीरे, धीरे बोलो
चमड़ी, नाखून और दांत
देखो कुछ छूटे नहीं

जल्दी
अब चलो

कल भी तो आना है
जंगल के उस हिस्से में
एक और का ठिकाना है

वहां से भी आती है दहाड़
गूंजता रहता है वो पहाड़

फिक्र मत कर
अब उसका ही नंबर है
अपने आगे सब सरेंडर है

बहुत दहाड़ता था
साला

- निशांत कुमार

Saturday 28 July 2018

ग्रहण के बाद सावन



फोटो साभार-google

सदी के सबसे लंबे चंद्र ग्रहण के साथ ही श्रावण मास की शुरुआत हुई है । वैसे जीवन में भी सुख-दुख का यही क्रम है । रात-दिन का भी यही क्रम है । सियासत में भी हार-जीत का यही क्रम है ।

पहले जो हारे (बीजेपी) थे
वो आज सत्ता में हैं
एकतरफा हैं
पहले जो छाए (कांग्रेस) थे
आज उन्हें जीत की तलाश है
कहते हैं
ग्रहण के बाद दान करना चाहिए
जीवन में हारने के बाद ध्यान लगाना चाहिए
और राजनीति में
पटखनी के बाद  आसमान नहीं देखना चाहिए
तभी सावन आएगा


शायद ये श्रावण मास अपने साथ यही पैगाम लाया है । वैसे इस महीने का आध्यात्मिक और प्राकृतिक दोनों ही महत्व है । बारिश की वजह से ये जंगल, जमीन और फसल के लिए अच्छा माना जाता है । इस महीने में भगवान शिव की आराधना भी होती है ।

'हर हर महादेव'
बोल बम





Thursday 26 July 2018

झप्पी और माफी से लौटेगा राजनीति का वो दौर...



राहुल की झप्पी
वाह वाह
अब गडकरी की माफी
वाह वाह
राजनीति में लौटेगा वो दौर
वाह वाह

Is this change ? India changed ?


आदमी को जिंदगी में सकारात्मक होना चाहिए । वैसे दुनिया में इस तत्व की बहुत कमी होती जा रही है । हाल ही में संसद से राजनीति की सकारात्मक तस्वीर देखने को मिली । सदाचार की दो तस्वीरें । एक राहुल गांधी की और दूसरी नितिन गडकरी की । इनको देखने का अपना-अपना नजरिया हो सकता है । किसी को राहुल अच्छे लग सकते हैं । किसी को गडकरी । लेकिन मुद्दा राजनीति सदाचार है । पर्सनल पॉलिटिक्स से ऊपर उठने की बात है । सवाल ये है कि मौजूदा दौर की राजनिति में क्या ये स्थापित हो पाएगा ?

एक जवाब है- क्यों नहीं ?
दूसरा जवाब है- इससे कुछ नहीं होगा ।

सिंधिया से माफी मांगते नितिन गडकरी

कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया


मध्य प्रदेश के गुना में एक सरकारी कार्यक्रम में वहां के कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को नहीं बुलाने जाने का मुद्दा लोकसभा में उठा ।  सिंधिया लोकसभा में विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लेकर आए । जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री ने गलती मानी । और माफी भी ।

इससे पहले राहुल लोकसभा में पीएम नरेंद्र मोदी से गले मिले थे । उनका कहना था कि पीएम उन्हें पप्पू कहते हैं लेकिन उनके दिल में जरा भी गुस्सा नहीं है । अगर आंख मारने वाले प्रसंग को छोड़ दें  तो ये सदाचार ही कहलाएगा ।


तस्वीर सौजन्य लोकसभा टीवी
लंबे समय से संसद में ऐसे उदाहरणों की कमी-सी हो गई । राज्यों की विधानसभा में भी ऐसे नजारे अब नहीं दिखते । धीरे-धीरे बहस की जगह शोर ने ले लिया । लंबे चलने वाले सत्र छोटे होते चले गए । जनमुद्दों की जगह पर्सनल अटैक सुर्खियां बटोरने लगे । और राजनीति में जिसे देखो वही अटपटे बयानों का एक से बढ़कर उदाहरण प्रस्तुत करने लगा । इस तरह की राजनीति के कई कारण है । जिनमें जातिवाद की राजनीति, आरक्षण पर हल्ला और धर्म को वोट में बदलने का चलन भी शामिल है । क्षेत्रवाद पर भी उन्माद फैलाकर वोट लेने का दौर देश ने देखा है ।  

हमारे देश में राजनीति का गौरवशाली इतिहास रहा है । नेहरू के लिए लोकतंत्र का तात्पर्य एक ऐसा उत्तरदायित्वपूर्ण तथा जवाब देनेवाली राजनीतिक प्रणाली था, जिसमें विचार-विमर्श और प्रक्रिया के माध्यम से शासन हो । संसदीय परंपराओं के निर्वाह, ज्वलंतशील मुद्दों पर अपनी राय रखने और विरोधियों को भी अपनी बात कह देने में नेहरू का कोई सानी नहीं था । 1957 में जब वाजपेयी पहली बार लोक सभा में चुन कर आए थे तो नेहरू उनसे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने ऐलान किया कि एक दिन यह व्यक्ति भारत का प्रधानमंत्री बनेगा. लगभग चालीस साल बाद यह बात सच हुई । अटलजी भी संसदीय परंपरा और राजनीतिक मूल्यों पर चलने वाले राजनेता रहे हैं । 

भारत की राजनीति में आज कितने लोग हैं जो अपने विरोधी के बारे में इतनी ऊंची राय रखते हैं  और उससे बढ़ कर उसे सार्वजनिक रूप से कहने की हिम्मत रखते हैं। ये सदाचार वैसे ही गायब होता चला गया जैसे आजादी के बाद देश से गांधिगिरी । लेकिन फिल्म 'लगे रहो मुन्नाभाई' ने गांधिगिरी का अगल ही स्वरूप लोगों के बीच रखा । काफी हद तो ये लोकप्रिय भी हुआ । क्या राजनीति में भी झप्पी और माफी इसी रुप को ओढ़े आई है  ? जब भी गले मिलने की बात होगी राहुल के आंख मारने वाली तस्वीर भी सामने होगी । जैसे ही लेकिन चलो शुरुआत तो किसी ने की । लेकिन ये यहीं खत्म नहीं होना चाहिए । गडकरी के बाद ये आगे बढ़ना चाहिए ।
राजनीति में आज लड़ाई लड़ने से ज्यादा लड़ाई को दिखाने का चलन बढ़ा है । सोशल मीडिया पर प्रदर्शन का रोग फैला है । ना कोई नियम, ना कोई डर , जिसे चाहे करो ट्रोल । अब ऐसा होगा तो जनमुद्दे से ज्यादा प्रदर्शनवादी राजनीति और पर्सनल अटैक कैसे कम होंगे  ?  लेकिन इसे बदलने के लिए किसी को तो आगे आना होगा । कहते भी हैं- सफर पहले कदम से ही शुरू होता है ।




Wednesday 25 July 2018

ये भीड़ क्यों खड़ी है ?

ये भीड़ क्यों खड़ी है ?
सड़क पर लाश क्यों पड़ी है ?

कहीं हाथ में पत्थर
सामने जवान
कहीं लाठी-डंडे, लात-घूंसे
मजहबी खींचतान

लोकतंत्र है या उन्माद तंत्र ?
जुबान पर ये बात क्यों जमी है ?

गुस्सा ऐसा उबल रहा है
बच्चों का भी खून खौल रहा है
नफरत,शक और अफवाह ने बदल ली शक्ल
आस्था के साथ इनका बन गया है कॉकटेल

ये हिंदुस्तान है या उधम का स्थान ?
ये बहस आज क्यों छिड़ गई है ?

सियासत अपनी सुर खो रहा
संसद भी ये सब देख रहा
फीकी पड़ रही हर तबके की चमक
जाने ये किस दौर की है धमक ?

ये भीड़ क्यों खड़ी है ?
सड़क पर लाश क्यों पड़ी है ?

- निशांत कुमार

Tuesday 24 July 2018

'तुम मुझे वोट दो'



'तुम मुझे वोट दो'

मैं तुम्हें टूटी सड़क दूंगा
और  दिलाऊंगा विपक्ष की याद

तूम्हें बीमारी दूंगा
और कहूंगा आप भी रहें सतर्क

बदहाल नाले, खस्ताहाल अस्पताल
और कहूंगा पहले से था इसका हाल बेहाल

रोजगार नहीं, नए-नए विचार दूंगा
आंकड़ें भी दूंगा
और पिछली सरकार का हिसाब भी

तेरा सब मेरा
राशन, बिजली, पानी सबका ठेका मेरा
पढ़ाई-जुताई-बुआई-सिंचाई भी मेरी
और मुआवजा भी मेरा

इतना सब कौन देगा ?
चलो अच्छा
स्मार्ट सिटी और बुलेट ट्रेन भी लाऊंगा
चांद-मंगल के बाद गुरु पर पहुंचाऊंगा

'तुम मुझे वोट तो'
मैं तुम्हें बदल दूंगा
सचमुच

- निशांत कुमार 



मेरी पहली किताब (MY FIRST BOOK)

साथियों, मैं ब्लॉग कम ही लिख पाता हूं, इसलिए नहीं कि लिखना नहीं चाहता । दरअसल मैंने लिखने का सारा वक्त अपनी किताब को दे दिया । एक विद्यार्थी...