(अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस पर)
बहुत दहाड़ता था
साला
अब उठके दिखा
अरे धीरे, धीरे बोलो
चमड़ी, नाखून और दांत
देखो कुछ छूटे नहीं
जल्दी
अब चलो
कल भी तो आना है
जंगल के उस हिस्से में
एक और का ठिकाना है
वहां से भी आती है दहाड़
गूंजता रहता है वो पहाड़
फिक्र मत कर
अब उसका ही नंबर है
अपने आगे सब सरेंडर है
बहुत दहाड़ता था
साला
- निशांत कुमार
बहुत दहाड़ता था
साला
अब उठके दिखा
अरे धीरे, धीरे बोलो
चमड़ी, नाखून और दांत
देखो कुछ छूटे नहीं
जल्दी
अब चलो
कल भी तो आना है
जंगल के उस हिस्से में
एक और का ठिकाना है
वहां से भी आती है दहाड़
गूंजता रहता है वो पहाड़
फिक्र मत कर
अब उसका ही नंबर है
अपने आगे सब सरेंडर है
बहुत दहाड़ता था
साला
- निशांत कुमार
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