Thursday 6 June 2013

सवाल कई मगर निःशब्द जि़या !

मायानगरी का एक और सितारा निराशा के घने अंधकार में ओझल हो गया। फिल्मी दुनिया की चकाचैंध को अंधकार में तब्दील होते भी वक्त नहीं लगता। नाम, पैसा और शोहरत, एक ऐसा कॉकटेल जिसने रातों रात कई बॉलीवुड हस्तियों की जिंदगियां बदल दीं। शोहरत का नशा जब उतरा तो कई जिंदगियां निःशब्दहो गईं। कई ऐसे सवाल इस खामोशी में दफन हो गए जिन्हें अब ढूंढ पाना भी संभव नहीं। बॉलीवुड में शोहरत कमाने की चाहत में नफीसा जिया खान बन गईं। 18 साल की उम्र में बिग बी अमिताभ के साथ फिल्मों में एंट्री, आमिर खान के साथ प्रसिद्धि और अक्षय के साथ फिल्मों में रोमांस कर लोगों की चहेती बनीं जि़या ने आखिर क्यों अपनी निजी जिंदगी से हार मान ली?



                                       परवीन बॉबी जैसी ग्लैमरस अभिनेत्री की मौत ने भी दुनिया को झंकझोर कर रख दिया था। 1986 में अविनाशके बाद परवीन रूपहले पर्दे से अचानक गायब ही हो गईं। तन्हाइयों ने उनके जीवन को इस कदर छलनी किया कि फिर लोगों के बीच परवीन तो नहीं लौटीं, उनके मरने की खबर ही पहुंची। फिल्मों में ट्रेजेडी क्वीन के नाम से प्रसिद्ध मीना कुमारी की असल जिंदगी भी दुःखों से सराबोर रही। नशे की लत में डूबी मीना का 39 वर्ष की आयु में निधन भी रहस्य बनकर ही उभरा। बॉलीवुड की रंगीनियों ने ही दिव्या भारती, सिल्क स्मिति, रूबी सिंह और नफीसा जोसफ जैसी कई अन्य अभिनेत्रियों की जानें भी ली हैं।
                                      ग्लैमर की दुनिया का ये काला सच कई बार सामने आता रहा है। लेकिन सवाल ये उठता है कि, क्या ग्लैमर वर्ल्ड में मिली शोहरत की भी कीमत चुकानी पड़ती है? और ये कीमत क्या जान से भी बढ़कर साबित हो सकती है? ये सच है कि बॉलीवुड के कई सितारे यही कीमत चुकाते आए हैं। कभी तन्हाई उनकी कातिल बनी है तो कभी शोहरत ने ही उन्हें खोखला कर दिया ।

Tuesday 4 June 2013

प्यासी चिड़ियों का पैगाम

सुबह-सुबह सूरज के जगने से पहले जीवन होने का अहसास कराती हैं चिड़ियां । सुबह का चहकना चिड़ियों की मधुर कोलाहली ध्वनि से जुड़ा है । सूरज के जागने से पहले इनकी धमाचौकड़ी चालू हो जाती है । जो जीवन रात में ठहरा-सा लगता है, उसे ये अपनी कोलाहल से संगीत मय बना देती हैं । इनके वो काम चालू हो जाते हैं जो सूरज के डूबने तक जारी रहते हैं । न तो इनके घोंसले में किचन है जो खाना खाकर ये घर से निकले । न ही पानी की बोतल जो भरकर इकट्ठी रखे । ये चिड़ियों की फितरत भी नहीं है। ये पंख से आकाश नापती हैं । हवा में उड़ती हैं । एक मिनट में यहां हैं, तो दूसरे ही मिनट कहीं ओर । दिन-भर ये ऐसे ही अपना दाना-पानी जुटाती हैं । चैन इन्हें तब ही मिलता है जब पेड़ टहनी में हरे पत्ते की छाया इन्हें नसीब हो जाए। 



लेकिन कंक्रीट के जंगलों में ये सब कहां। यहां तो हर चीज जैसे नकली है। मिला हुआ जीवन भी। यहां पक्षी पिंजरे में ज्यादा सोहते हैं। बाहर उड़ने के लिए आकाश भी है, हवा भी है लेकिन किसके लिए ? हवाई जहाज के लिए । जमीन है पर अब एक ही जाति(मानव) की जागीर है। जिस प्रकृति ने सबको हक दिया। उसमें से कई बेदखल हो गए। हमारी चिड़िया भी गर्मी में प्यासी किसी छत पर गर्म हवाओं के बीच ये रोना रो रही है । अपनी व्यस्था सुना रही है। पानी जो कभी पेड़ों की छांव ओढ़े हुआ करता था । प्यास लगने पर गला तर हुआ करता था। वह दिन लदते चले जा रहे हैं। हम देख भी देख रहें हैं। पानी की परेशानी से हम भी दो-चार हैं। लेकिन फिर भी संभल नहीं रहे। चिड़ियां एक पेड़ से अब दूसरी पेड़ पर नहीं बल्कि छत पर पानी ढूंढती है। आकाश में उड़ती है तो बादलों से अपनी बात कहती है। मॉनसून तक अपना पैगाम ले जाने को कहती है। मॉनसून आ गया है। यही दिलासा सुबह चिड़ियों की आवाज को मदमस्त किए हुए हैं । सुबह के जीवन का संगीत बचाए हैं । थोड़ी मिठास हम भी इसमें घोल सकते हैं । पानी का चंद हिस्सा चिड़ियों के लिए छत पर रख सकते हैं । छत पर चिड़ियों की धमाचौकड़ी मचा सकते हैं ।  

मेरी पहली किताब (MY FIRST BOOK)

साथियों, मैं ब्लॉग कम ही लिख पाता हूं, इसलिए नहीं कि लिखना नहीं चाहता । दरअसल मैंने लिखने का सारा वक्त अपनी किताब को दे दिया । एक विद्यार्थी...