Monday 24 September 2018

'नर्क' तो नॉर्वे में है

Welcome to Norway's Hell

मेरे कहने का मतलब वो नहीं है । स्वर्ग और नर्क में अगर अंतर करेंगे । तो यहां नर्क जीत जाएगा । वैसे भी नार्वे दुनिया से सबसे खुशहाल देशों में से एक है ।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के मानव विकास सूचकांक में भारत 130वें स्थान पर और नार्वे अव्वल है । इसी नॉर्वे में नर्क नाम का एक गांव भी है ।
फोटो सभार गूगल









1990 में यहां की Mona Grudt मिस यूनिवर्स भी  रह चुकी हैं । यानी नर्क से बला की सुंदरी ने ब्रह्मांड में डंका बजाया है ।

Mona Grudt 


नर्क एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है । आबादी बहुत कम है । सितंबर के महीने में यहां ब्लू इन हेल फेस्टिवल मनाया जाता है ।  Hell का नाम नार्वेजियन शब्द hellir से पड़ा है । इसका मतलब होता है 'लटका हुआ' । बर्फबारी की वजह से यहां घरों के छज्जे नीचे की ओर झूके होते हैं शायद ये उसी ओर इशारा करती है । वैसे नार्वे खगोलीय रहस्यमयी जगह भी है । आर्कटिक सर्कल में स्थित इस देश में  मई से जुलाई के बीच करीब 76 दिनों तक सूरज अस्त नहीं होता ।

अगर कोई आपसे अब कहे कि 'नर्क में जाओ' (Go to Hell) तो इस पर क्या कहेंगे ? नर्क जाना पसंद करेंगे या फिर...।





Friday 7 September 2018

'मधुमक्खियां' बचा रही हाथियों की जान, जानिए कितनी जरूरी हैं ये

आधुनिकता हाथियों के लिए मुसीबत बन गई । भारत में जंगलों से गुजरने वाली ट्रेने इनके लिए यमदूत साबित होने लगी...हमारे देश में हर साल औसतन 17 हाथी रेल दुर्घटना का शिकार होते हैं । 
2017 में 12 हाथियों ने जान गंवाईं । वहीं 2016 में इनकी संख्या 16 थी । आंकड़े कहते हैं 2009 से 2017 के बीच (8 सालों में) करीब 120 गजराज हादसे का शिकार हुए । 
लेकिन रेलवे ने इसे एक जंगल के ही तरकीब से हल किया । हाथी जिससे डरते थे, उसी से उनकी रक्षा होने लगी है ।


फोटो साभार गूगल

पहले पढ़िए रेल मंत्री पीयूष गोयल का ये ट्वीट-
रेलवे ने हाथियों को ट्रेन हादसों से बचाने के लिए "Plan Bee" के तहत रेलवे-क्रासिंग पर ऐसे ध्वनि यंत्र लगाए हैं जिनसे निकलने वाली मधुमक्खियों की आवाज से हाथी रेल पटरियों से दूर रहते हैं और ट्रेन हादसों की चपेट में आने से बचते हैं।




हाथी मधुमक्खियों की 'हम्म' ध्वनि से 400 मीटर दूर से ही सुन लेते हैं । औसतन 100 मीटर की दूरी बनाकर रखते हैं । और आस-पास भटकने का जोखिम नहीं लेते । 
अफ्रीका में जो किसान हाथियों से परेशान रहते हैं । या जिन इलाकों में हाथियों उत्पात मचाते रहते हैं । वहां मधुमक्खी पालन की सलाह दी गई है । संभवत: ये तरकीब पूरी दुनिया में वहीं से फैली है ।


केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है मधुमक्खी का छत्ता खा लेने वाला एक कैटरपिलर प्लास्टिक भी खा सकता है । सोचिए अगर मधुमक्खी ना होती तो ये प्लास्टिक के खतरे से निपटने की ये उम्मीद भी नहीं दिखती ।
मधुमक्खी की ध्वनी 'हम्म' हाथियों की जान बचाती है । लेकिन इसका इस्तेमाल योग और ध्यान में भी तो होता है । 
भ्रामरी प्रणायाम में मधुमक्खियों की आवाज का इस्तेमाल किया जाता है । इसे बी-टेक्निक ब्रीदिंग भी कह सकते हैं । भ्रामरी से चिंता और क्रोध पर नियंत्रण रहता है । हाइपरटेंशन की शिकायत में इससे फायदा मिलता है ।

मधुमक्खियों के जरिए इकठ्ठी शहद स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होती है । 20 मिनट में इसके पोषक तत्व रक्त में पहुंच जाते हैं। क्योंकि ये पहले से ही मधुमक्खियों द्वारा पचाया गया होता है ।
मधुमक्खी में सूंघने की जबरदस्त शक्ति होती है । 170 रिसेप्टर्स पाए जाते हैं । भविष्य में बम और ड्रग्स ढूंढने अगर इनका इस्तेमाल हो तो कोई आशचर्य नहीं । 
कुछ शोधकर्ता ने ये भी पाया है कि इनके डंक से निकला जहर गठिया के लिए काफी लाभप्रद है.. 
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन मानते थे कि अगर पृथ्वी से मधुमक्खियां खत्म हो गईं तो मनुष्य जाति भी बहुत साल जीवीत नहीं रह पाएगी ।





Tuesday 4 September 2018

'कांग्रेस मुक्त भारत' के बाद 'कांग्रेस-माओवादी' पार्टी !


भाजपा के प्रवक्ता ने कहा कि नक्सलियों को बढ़ावा देना चाहती है कांग्रेस । आरोप ये भी लगाया कि नक्सलियों से रिश्ते रखने के दो आरोपियों के लेटर में दिग्विजय का फोन नंबर मिला । ये भी कहा गया कि पार्टी अपना नाम कांग्रेस-माओवादी कर ले । 

उधर, कांग्रेस नेता दिग्विजय ने इन आरोपों पर कहा- "अगर ऐसा है तो मुझे सरकार गिरफ्तार करे । पहले देशद्रोही, अब नक्सली । इसलिए यहीं से मुझे गिरफ्तार करिए ।"
आपको बता दें कि शिवराज सिंह चौहान ने अपने भाषण में दिग्गी के लिए देशद्रोही शब्द का इस्तेमाल किया था । जिसके बाद भोपाल के टीटी नगर थाने में दिग्विजय गिरफ्तारी देने भी पहुंचे थे । लेकिन मध्य प्रदेश के मुखिया के बयान पर पुलिस ने कोई एक्शन नहीं लिया । पुलिस ने कहा- कोई मामला ही दर्ज नहीं है तो गिरफ्तारी किस बात की ?
अब संबित पात्रा ने 'नक्सली' की ओर इशारा किया है । जरा समझे इस सियासत को और हाल ही मे हुए कुछ घटनाक्रम को ।

- अभी महाराष्ट्र से कई कथित नक्सली समर्थक को पुलिस ने पकड़ा । कई की नजरों में ये मानवाधिकार कर्यकर्ता भी हैं । भारतीय मीडिया में ये शोर ज्यादा है कि प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश का कोई गहरा कनेक्शन जुड़ा हुआ हो सकता है । 
- अभी नोटबंदी को लेकर रिजर्व बैंक ने स्पष्ट किया कि 97 फीसदी पुराने नोट वापस आ गए । मतलब सरकार को अपने ही फैसले पर मुंह की खानी पड़ी । 
- अभी डॉलर के मुकाबले रुपया 70 के पार जा चुका है ।
- अभी राफेल पर  फ्रांस की मीडिया में छपी कथित गड़बड़ी की खबर से भारत में सियासत खौली रही है ।
- अभी एससी-एसटी एक्ट में हुए संशोधन को लेकर पूरे मध्य प्रदेश में बवाल मचा हुआ है । 6 सितंबर को तो भारत बंद का ऐलान भी किया गया है ।

इतनी बातें जानना इसलिए जरूरी है कि इन सबके बाद ही संबित पात्रा का एक उड़ता हुआ नया तीर लोगों के बीच आया है ।
क्या मतलब समझा जाए पहले  'कांग्रेस मुक्त भारत ' का नारा दिया गया था । फिर मकसद पूरा होता दिखा तो इसे एक जुमला कह दिया था । इसी दौरान 'भगवा आतंकवाद' वाले बयान को लेकर दिग्विजय एंटी हिंदू छवि लिए फिरते भी रहे । बीजेपी को इसका भरपूर फायदा भी मिला । लेकिन इस छवि को धोने के लिए दिग्विजय ने नर्मदा में भी डुबकी लगाई । बीजेपी का ऐसा कोई नेता मुझे याद नहीं आता जिसने पैदल नर्मदा परिक्रमा की हो । 
लग यही रहा है कि मुद्दों को छोड़ अब नया मॉडल आकार लेता दिख रहा है । जिसका इस्तेमाल आगामी चुनावों में देखने को मिल सकता है ।  जिस कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में झीरम घाटी नक्सली हमले में कई दिग्गज नेताओं को खोया । उसे इस तरह के नाम से सुसज्जित कर सवालों में खड़ा किया जा रहा है । 
क्या ये ठीक वैसे ही है जैसे पहली बार कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया गया था । या फिर बीजेपी की तरफ से चारा फेंककर देखा गया है कि कितनी 'मछली' इसे पसंद करती है । चला तो चांद तक, नहीं तो शाम तक। ये वही संबित पात्रा हैं जिन्होंने अभी एक टीवी बहस के दौरान मानसरोवर यात्रा पर गए राहुल गांधी को 'चाइनीज गांधी' कहा था ।
आगे आगे देखिए होता है क्या ।। 




Saturday 1 September 2018

कलयुग का 'कर्ण'


इस बार भी नाकाम हूं
अंक पाकर भी गुमनाम हूं
बारी मेरी ऐसी है
पिछली रोटी जैसी है

सपने मेरे महंगे हैं
और क्या मुझे सहने हैं
कलयुग का 'कर्ण 'हूं
भुगत रहा दंड हूं

अब स्वर उठा है
भोर हो 
पुराने नियम बदलने पर
जोर हो

धरती ही नहीं घूमती 
मनुष्य भी चक्कर लगाता है
वर्ण व्यवस्था में शीर्ष वाला भी
शून्य पर आता है

कल तुम थे दुर्बल
माना हम थे सबल
अपना पराभव देख लिया
आरक्षण बहुत झेल लिया

समानता ही मेल है
सियासत तो खेल है
आबादी वाला आबाद है
बाकी की क्या औकात है

- निशांत कुमार 




मेरी पहली किताब (MY FIRST BOOK)

साथियों, मैं ब्लॉग कम ही लिख पाता हूं, इसलिए नहीं कि लिखना नहीं चाहता । दरअसल मैंने लिखने का सारा वक्त अपनी किताब को दे दिया । एक विद्यार्थी...