Tuesday 4 June 2013

प्यासी चिड़ियों का पैगाम

सुबह-सुबह सूरज के जगने से पहले जीवन होने का अहसास कराती हैं चिड़ियां । सुबह का चहकना चिड़ियों की मधुर कोलाहली ध्वनि से जुड़ा है । सूरज के जागने से पहले इनकी धमाचौकड़ी चालू हो जाती है । जो जीवन रात में ठहरा-सा लगता है, उसे ये अपनी कोलाहल से संगीत मय बना देती हैं । इनके वो काम चालू हो जाते हैं जो सूरज के डूबने तक जारी रहते हैं । न तो इनके घोंसले में किचन है जो खाना खाकर ये घर से निकले । न ही पानी की बोतल जो भरकर इकट्ठी रखे । ये चिड़ियों की फितरत भी नहीं है। ये पंख से आकाश नापती हैं । हवा में उड़ती हैं । एक मिनट में यहां हैं, तो दूसरे ही मिनट कहीं ओर । दिन-भर ये ऐसे ही अपना दाना-पानी जुटाती हैं । चैन इन्हें तब ही मिलता है जब पेड़ टहनी में हरे पत्ते की छाया इन्हें नसीब हो जाए। 



लेकिन कंक्रीट के जंगलों में ये सब कहां। यहां तो हर चीज जैसे नकली है। मिला हुआ जीवन भी। यहां पक्षी पिंजरे में ज्यादा सोहते हैं। बाहर उड़ने के लिए आकाश भी है, हवा भी है लेकिन किसके लिए ? हवाई जहाज के लिए । जमीन है पर अब एक ही जाति(मानव) की जागीर है। जिस प्रकृति ने सबको हक दिया। उसमें से कई बेदखल हो गए। हमारी चिड़िया भी गर्मी में प्यासी किसी छत पर गर्म हवाओं के बीच ये रोना रो रही है । अपनी व्यस्था सुना रही है। पानी जो कभी पेड़ों की छांव ओढ़े हुआ करता था । प्यास लगने पर गला तर हुआ करता था। वह दिन लदते चले जा रहे हैं। हम देख भी देख रहें हैं। पानी की परेशानी से हम भी दो-चार हैं। लेकिन फिर भी संभल नहीं रहे। चिड़ियां एक पेड़ से अब दूसरी पेड़ पर नहीं बल्कि छत पर पानी ढूंढती है। आकाश में उड़ती है तो बादलों से अपनी बात कहती है। मॉनसून तक अपना पैगाम ले जाने को कहती है। मॉनसून आ गया है। यही दिलासा सुबह चिड़ियों की आवाज को मदमस्त किए हुए हैं । सुबह के जीवन का संगीत बचाए हैं । थोड़ी मिठास हम भी इसमें घोल सकते हैं । पानी का चंद हिस्सा चिड़ियों के लिए छत पर रख सकते हैं । छत पर चिड़ियों की धमाचौकड़ी मचा सकते हैं ।  

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