Monday 30 July 2018

जब मैं पहुंच गया चीन


रात जब घर पहुंचा तो सोचा कुछ लिखूंगा । लेकिन नींद ने इस इच्छा को पूरी नहीं होने दिया । सो गया । खबर भी नींद में घूमती रही ।
अखबार में टाइम्स के हवाले से एक खबर पढ़ी तो जैसे मैं चीन ही पहुंच गया । लिखा था- #metoo कैंपेन पर सरकार की नजर ।
भाई बुलेट ट्रेन वाले देश में ऐसा होता होगा । दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में महिलाओं की इस कैंपेन से भला क्या एतराज होगा ?

फिर सीन चेंज हो गया । सपने में आप कब-कहां पहुंच जाते हैं । इस पर शोध हो तो शायद टाइम मशीन वाली पहेली सुलझ जाए ।
चीन की चिंता लिए मैं पहुंच गया लिच्छवियों (बिहार) के पास । बौद्धकालीन समय में । फिर तो एक बार चीन पहुंच जाऊं । फिर भारत । तुलना भी शुरू हो गई । भारत का लोकतंत्र क्या है ? और चीन का साम्यवाद क्या है ? 
सौजन्य-google

चीन में  साम्यवादी दल की स्थापना 1921 से हुई । भारत में लोकतंत्र लिच्छवी गणराज्य (बिहार) समय से है । जिसका संबंध छठी शताब्दी ई.पूर्व से है । 
सोशल मीडिया पर चीन अपने नागरिकों के पोस्ट की मॉनिटरिंग करता है । पोस्ट डिलीट भी करता है । वहां महिलाओं द्वारा चलाए गए  #metoo कैंपेन के दौरान हजारों पोस्ट चीन ने डिलीट किेए हैं । #metoo कैंपेन सबसे पहले 2017 में अमेरिका से शुरू हुआ । भारत में भी #metoo कैंपेन चलाया गया । यहां किसी ने कोई मॉनिटरिंग नहीं की । 

चीन में नागरिक सरकार के खिलाफ खुलकर बात नहीं करते । भारत में अभिव्यक्ति की आजादी इस कदर है कि यहां जनता जिसे चाहे ट्रोल कर देती है । कई उदाहरण हैं । 

चीन में मीडिया पर सेंशरशिप है । भारत में कुछ मामलों को छोड़ दें तो मीडिया जनता की आवाज है । हमारे संविधान ने अभिव्यक्ति की आजादी दी है । ये जनता का मौलिक अधिकार भी है ।

भारत में हर पांच साल में चुनाव होते हैं । लेकिन चीन ने आजीवन अपना नेता चुन लिया है । शी जिनपिंग वहां के राष्ट्रपति हैं ।
चीन के राजनीतिक फैसलों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी भी दखल देती है । जबकि भारत में संसद की सहमति ही सबकुछ है ।
चीन की हमेशा से ही विस्तारवादी नीति रही है । जबकि भारत की हमेशा से शांति की नीति रही है । भारत ने पड़ोसियों पर कभी युद्ध की पहल नहीं की ।

चीनी में कोई स्वतन्त्र न्यायपालिका नहीं है। हालांकि 1970 के आस-पास यूरोपीय न्याय प्रणाली के आधार पर एक प्रभावशाली विधिक प्रणाली विकसित करने की कोशिश की गई । लेकिन न्यायपालिक साम्यवादी दल के अधीन ही है। इस प्रणाली के दो अपवाद हैं- हांगकांग और मकाउ । जहां क्रमश: ब्रिटिश और पुर्तगाली न्यायपालिका व्यवस्था है ।

चीन से उलट भारत में न्यायपालिका स्वतंत्र है । यहां सुप्रीम कोर्ट तक व्यक्ति को जाने का अधिकार है । कोर्ट के फैसलों पर राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं है ।

सपना टूटा तो सुबह हो चुकी थी । इस दौरान कई बार  चीन गया । अब चाउमीन की याद आ रही है । भारत में हॉकर्स पर खूब खाई है । कॉलेज में शाम को इसे खाने का जैसे चस्का सा लग गया था । पत्रकार के तौर पर भी कभी-कभी इसे खा ही लेता हूं । और कभी- कभी चीन भी पहुंच जाता हूं । ऐसे कई बार चीन होकर आ चुका हूं ।  ब्रूस ली, जैकी चैन, जेटली और वो उस अभिनेता का क्या नाम है ?...हां यार वही... 



No comments:

Post a Comment

मेरी पहली किताब (MY FIRST BOOK)

साथियों, मैं ब्लॉग कम ही लिख पाता हूं, इसलिए नहीं कि लिखना नहीं चाहता । दरअसल मैंने लिखने का सारा वक्त अपनी किताब को दे दिया । एक विद्यार्थी...