Wednesday 8 August 2018

अब नहीं गूंजता

अब नहीं गूंजता 
संसद में

अब भी रहता हूं
खेत में, फुटपाथ पर
दम घुटता है
अस्पताल में, ट्रेन के डिब्बों में
सौ. गूगल










अब नहीं गूंजता 
संसद में 

दिखता हूं
कार की कांच से बाहर
उस झुग्गी में
रहता हूं
राशन की कतार में
मुआवज़े की आस में

अब नहीं गूंजता 
संसद में

बहता हूं
नारी अस्मिता के आंसू में
गंगा की धार में
बेरोजगारों के विचार में

अब नहीं गूंजता 
संसद में

खामोश हूं
टकटकी लगाए आंखों में
चेहरे पर खिंचती लकीरों में 
क्रोध के दबे अंगारों में
बदहवास से सवालों में 

अब नहीं गूंजता 
संसद में

- निशांत कुमार




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